________________ विक्रम चरित्र बढते जाते है. कितने ही तीर्थ कर, गणधर, सुरेन्द्र, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि महान् समर्थ पुरुष काल के ग्रास बने हुए है, वहां साधारण जीवों की तो गिनती ही क्या ? जिस महाराजाने श्री शत्रुजय आदि महातीर्थी की कितनी ही बार यात्राए की और अपना जीवन सार्थक किया, ऐसा राजा की * मृत्यु का शोक करने की क्या जरूरत है ? वह तो स्वर्ग के सुखों का भोग करके वहां से च्युत होकर थोडे ही सवों में मोक्षप्राप्त करेगें अतः शोक का त्याग करो.” इस प्रकार गुरुवाणी सुन कर विक्रमचरित्र का चित्त शान्त हुआ.. जब तुम आयो जगत में, जग हसत तुम रोय; अब जैसी करणी करो, तुम हसत जग रोय. प्रिय पाठकगण ! मनुष्य अपनी बुद्धि और पुरुषार्थ से किस प्रकार के अद्भुत कार्य कर सकता है. साहस से किस प्रकार आपत्ति का सामना और अपना कार्य सिद्ध कर सकता है, मनुष्य यदि बिना विचारे कार्य करे तो किस प्रकार महान अनर्थ में गिरता है ? और महाराजा विक्रम की मृत्यु की बातें भी आपने जानी. सामान्य नियम के अनुसार पिता की मृत्यु तथा उस से शोकात होना आदि बातें भी विक्रमचरित्र के विषय में आपने पढी. दुःख के समय में आप्तजन, सज्जन तथा गुरुजनों का क्या कर्तव्य होता है यह भी आपने देखा. अब आगामी अन्तीम सर्ग में: विक्रमचरित्र का राज्याभिषेक सिंहासन की पुतलियों एवं चार चामरधा-- रिणी की रोमांचकारी बातचित आदि आप अवश्य पढेगे. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust