________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 591 है उसी का कीर्तिकारक, जन्म इस संसार में; दे दिया सर्वस्व जिसने, और के उपकार में. विक्रम महाराजा की मृत्यु के दूसरे दिन शालिवाहन राजा से युद्ध करने के लिये विक्रमादित्य का पुत्र विक्रमचरित्र आया. उसने थोडे ही समय में शालिवाहन राजा की सारी सेना को दशों दिशाओं में भगा दी. तब शालिवाहनने विक्रमचरित्र के साथ संधि की, और अपने नगर में गया. उधर विक्रमचरित्र भी अपने नगर में आया, किन्तु पिता के मृत्युजनितशोक में रातदिन मग्न रहने लगा, उस समय पू. आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी महाराज उस का शोक छुडाने के लिये वहां आये, विक्रमचरित्र को इस प्रकार उपदेश देकर शान्त किया. "हे राजन् ! धम', शोक, भय, आहार, निद्रा, काम, कलि और क्रोध जितने प्रमाण में करे, उतने ही प्रमाण में 4. इस प्रकार पू. आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी-गुरुमुख से उपदेश को सुन कर अंत समय में महाराजाने धर्म की आराधना कर स्वर्ग में गये, तत्पश्चात् पू. आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकर सूरीश्वरजी गुरुदेवने पिता के मृत्यु के शोक में डुबे हुए विक्रमचरित्र का शोक दूर करने के लिये धर्मोपदेश दिया. गुरुदेव के उपदेश को सुन कर विक्रमचरित्र का शोक कुछ हलका हुआ, और शोक छोड कर शीघ्र ही उस ने अपने पिता के मृत्युकार्य को . सपन्न किया, - मूरख जाने मुझ विना, चाले नहीं व्यवहार; गये युधिष्ठिर राम-नल, फिर भी चले ससार. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust