________________ विक्रम चरित्र राजा के विक्रमचरित्र को पिता के स्वर्गगमन से महान् आघात हुआ. दुःखी मन से स्वर्गीय पिता के देह की अंतिम विधि बडे धूमधाम से कर अग्निसंस्कार किया. x मतान्तः - विक्रम महाराजा की मृत्यु के बारे में दूसरा हाल इस प्रकार मिलता है कि-एक समय विक्रम महाराजा और शालिवाहन राजा के बीच युद्ध हुआ. उस में विक्रम महाराजा घायल होकर अपने नगर में लौट आये, और खिन्न रहने लगे. अति विषाद से इस प्रकार की उदर व्याधि-पेट की पीडा उत्पन्न हुई, कि उन्हे क्षणभर भी आराम नहीं मिला. उन्होंने अग्निवैताल का स्मरण किया पर वह भी उस समय उपस्थित नहीं हुआ. राजवैद्य को दिखाने पर वैद्यने कहा कि, यदि आप कौए का मांस खाय तो जी सकते है. महाराजाने रोग शांति के लिये और जीने की इच्छा से काकमांस का भक्षण किया तब भी दुष्कर्म के उदय से राजा का रोग बढता ही गया. और लोकोक्ति भी है कि काकमांस खाया, साहस छोडा, आत्मा को दुःखी किया लेकिन अमर न हो शका, अतः हे विक्रम ! तुम इस प्रकार जन्म हार गये. अन्त समय में आचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी महाराज वहां आये, और उन्हें कहने लगे, 'हे राजन् ! तुम खेद न करो, उत्तम जन आपत्ति में शोक नहीं करते, धन, जीवितव्य, स्त्री, और आहार इन चारों से किसी को भी तृप्ति नहीं हुई, सभी जीव इन से अतृप्त रहकर ही जगत छोड गये हैं, छोडते है. और छोडेगे.२ 1 खद्धो काओ मुक च साहस, विनडिअं अप्पाण'; अजरामर न हुआ हा विक्कम ! हारिओ ज़म्मो. स. 11/1029 / / .. 3 . धनेषु. जीवितव्येषु स्त्रीषु चाहार कर्मसु;.... अतृप्ताः प्राणिनः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च. स. 11/131 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust