________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 589 गजाओं की सेनाएँ मैंदान में मिली. रथी रथवालों के साथ, घुडसवार घुडसवारों के साथ, पैदल सैनिक पैदल सैनिकों के साथ और हाथीवाले हाथीवालों के साथ लडने लगे, तलवारें तलवारों से भिड गई, भालेवाले भालेवालों से, बाणवाले बाणवालों से, अस्त्रबाले अस्त्रवालों के साथ, दंडवाले दंडेवालों से लड़ने लगे. इस तरह उन दोनों बलवान सेनाओं में घोर युद्ध हुआ. वह इतना भयंकर था, आकाश में मानो कि देव भी उसे देखने के लिये आये. इसी तरह जब युद्ध हो रहा था, इतने में विक्रम महाराजा की छाती में शालिवाहन राजा का छोडा हुआ तीर आकर लगा. उस समय सेना के बीच में रहे हुए विक्रम महाराजा को अपने मंत्री आदिने घेर लिये, और उपचार करने लगे, . किन्तु स्थिति चिंताजनक रही तब भट्टमानादि मंत्री इस प्रकार बोले, "हे स्वामी ! आप जरा भी आत ध्यान न करे, दृान से जीव कुगति में जाता है. कहा है कि आत ध्यान करने से जीव तिर्य चगति में जाता है, और साथ ही राजन् ! जिस प्रकार हम आज तक आपकी सेवा करते आ रहे हैं, उसी तरह हम विक्रमचरित्र-आपके पुत्र की सेवा हमेशा करेगें, तब श्री विक्रमादित्यने शुभ ध्यान में मग्न होकर पंचपरमेष्ठी को नमस्कार करते हुए स्वर्ग सुख को प्राप्त किया. . विक्रमादित्य महाराजा के स्वर्गवास का समाचार सुन कर सारी सेना में विषाद की गहरी छाया छा गई. विक्रम महा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust