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________________ 588 विक्रम चरित्र दित्य के गावों पर अभी जो हमला किया था, वह अच्छा नहीं "किया, अतः शीघ्र ही हमारे महाराजा विक्रमादित्य के पास जाकर उन से मित्त कर अपराध की माफी मागिये. यदि आप नहीं मानते तो महाराजा विक्रमादित्य अपनी सेना तैयार करके आप को जीतने के लिये आएंगे. -:. . यह सुन कर शालिवाहन राजाने क्रुद्ध होकर और भ्रकुटी चढा कर कहा, "हे दूत ! हमारे सामने अब ज्यादह कहने की जरूरत नहीं. तेरे स्वामी को कहना कि मैं युद्ध के लिये तैयार हूँ, और शीघ्र ही सेना लेकर रणांगण में आता हूँ.” . . दूतने शीघ्र ही महाराजा विक्रमादित्य से जाकर कहा, "हे स्वामिन् ! शालिवाहन तीने जगत को तृण के समान गिता है, और इस समय तो वह आप को तुच्छ समझता है, अतः आप शीघ्र ही सेना लेकर युद्ध के लिये प्रस्थान कीजिये." यह सुन कर महाराजाने अपनी विशाल सेना तैयार की और प्रतिष्ठानपुर की तरफ प्रयाण किया. उस समय महाराजा ने सनिकों को खूब धन देकर संतुष्ट किया और इस प्रकार महाराजा से सन्मान प्राप्त कर के सेवकगण भी खुश खुश हुए. कहा हैं कि वीर लडाई, वैद्य विमारी, विप्र मरण चाहे सब का; सन्तपुरुष की अभिलाषा यह हो, सुख शुभ जगमें सब का. ....... अनेक मत्त हाथी, घोडे और सुभटों से सुशोभित दोनों P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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