________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 587 एक समय शालिवाहन महाराजा विक्रमादित्य के कुछ गावों पर हमला कर के पुनः अपने नगर को गया. जब यह बात भट्टमात्र मंत्रीने जानी तब महाराजा से कहा, "हे स्वामी ! शालिवाहन हमारे गावों पर इस तरह हमला कर जाय यह अच्छा नहीं है, अतः सेना लेकर शालिवाहन पर आक्रमण कर के उसे जीतना चाहिये, क्यों कि सामर्थ्य होते हुए कौन व्यक्ति दूसरे का पराभव सहन करेगा. सिंह कभी दूसरे की गर्जना सहन नहीं कर सकता, केवल डरपोक तथा सियार ही दूसरे से किया गया तिरस्कार सहन करते है." महाराजाने कहा, "हे मंत्रीवर ! तुमने सत्य कहा है, राजा हमेशा चार नीति से काम लेते है. यदि साम से राजा का काम शीत्र ही बन जाय तो जीव को कष्ट देनेवाले दाम की जरूरत नहीं, और यदि दाम से काम निकल जाय तो भेद की जरूरत नहीं, अगर भेद से काम बनता है तो दण्ड का क्या प्रयोजन ?" तब मंत्री बोला, "पहले शालिवाहन के पास चतुर दूत भेजे, यदि शालिवाहन दूत के वचनों को न माने तो बाद में उसे जीतने की तैयारी करे." तब मंत्री से परामर्श करके महाराजाने एक दूत भेजा. प्रतिष्ठानपुर में पहुँच कर दूत राजा शालिवाहन की सभा में गया. और विक्रमराजा द्वारा कथित सब बात को वह कहने लगा, " "हे शालिवाहन भूपति ! आपने हमारे महाराजा विक्रमा- . P.P. Ac. Gunratnasuri M's. Jun Gun Aaradhak Trust