________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 585 को परपुरुप के सामने ऐसी चेष्टाएं नहीं करनी चाहिये. अतः मान के विकारों को शान्त करा.” ऐसा सुन कर अपनी मनोकामना को पूर्ण न होती देख कर मन में उस स्त्रीने विचार किया, “कहीं यह पुरुष बहार जाकर मुझे बदनाम न कर दे.' इस लिये वह जोर जोर से चिल्लाने लगी. उस की चिल्लाहट सुन कर घर आते हुए जुगारी को उस अतिथि के बारे में शौंका उत्पन्न हुई, और बह खड्ग निकाल कर जलदी चलने लगा, पति को दूर से / घर आता हुआ जान कर उस स्त्रीने विचार किया, 'यह अनिधि वृथा ही मारा जायगा, अतः इसे बचाना चाहिये.' कहा है कि-माह से व्यक्ति क्षण में आसक्तिवान् , क्षण में मुस्त, क्षण में कोपायमान और क्षण में क्षमावान् बनता है. माह से व्यक्ति में वदर की तरह चंचलता आ जाती है. अतः मोह व्यक्ति को बन्दर की तरह नचाता हैं. अतः उस स्त्रीने. अतिथि को बचाने के लिये चुल्हे में से जलती हुई लकडी लेकर घर के छापरे में आग लगा दी, और शीघ्र / ही चिल्लाने लगी, .." दौडओ, दौडो, मेरा (यह न होते तो सारा घर जल जाता.).. घर जल रहा हैं." चित्र नं. 43 र उस समय अतिथि को KESTRA- - W ester Centra.ASON sASAP PO यो JOR P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust