________________ 584 . .. ..... विक्रम चरित्र - - * उस नौकर को अतिथि व पति को बुलाने के लिये भेजा. जुआ खेलने में मस्त उस जुगारी ने नौकर के साथ अतिथि को घर भेज दिया. घर आये हुए उन अतिथि को देख कर उस जुगारी की स्त्री कामदेव के पांचो बाणों से पीडित हुई, अर्थात् उस के मन में कामवासना व्याप्त हुई. कहा है कि-कामदेव के पुष्परूपी बाणों से घायल हुए हृदय के कारण विवेक पानी की तरह बह जाता है. - वह अतिथि अपने दोनों पैर धो कर खाने के लिये बैठा, तब उस स्त्रीने अतिथि को कि हुई श्रेष्ठ रसोई के साथ चावल, दाल, घी आदि परोसा, और इस प्रकार मन में सोचने लगी 'यदि यह व्यक्ति मेरा पति बन जाय तो मैं गोत्रदेवी को अद्भुत बलिदान दूंगी.' उस पुरुष को रूपवान देख कर उसी समय वह क्षत्रियपत्नी मोहरूपी पिशाच से ग्रस्त हो गई. कहा है कि-उल्लू दिन को नहीं देखता, कोआ रात को नहीं देखता लेकिन कामान्ध व्यक्ति ऐसा अद्भुत है जो न रात में देखता हैं न दिन में देखता है. धतूरा खाया हुआ व्यक्ति सारे जगत को कंचनमय देखता है, उसी तरह कामि स्त्री सारे जगत को पुरुषमय देखती है, और कामी पुरुष सारे जगत को स्त्रीमय देखता है. महाराजाने अपने मन को शुद्ध रखते हुए उस की. मनोगत इच्छा को जान कर कहा, "हे स्त्री ! शीलवान् स्त्री P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust