________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित , 583 महाराजा एक पर्वत पर पहुंचे. वहां कायोत्सर्ग ध्यान में स्थित और नासिका पर स्थिर दृष्टि किये हुए, एक प्रशान्त मूर्ति मुनि को देखा. कहा है कि-जो गरमी की ऋतु में आतापना लेते है, सर्दी की ऋतु में निर्वस्त्र रहते है और बरसात की मौसम में अंगो को संकुचित कर के रहते है; वे सचमुच ही संयम से सुशोभित महान् साधु पुरुष है." . उस समय मुनि महाराजने काउसग्ग में ही ज्ञान से विक्रमादित्य महाराजा को जान कर काउसग्ग पार कर 'धर्मलाभ, पूर्वक उस का नाम लेकर महाराजा को संबोधन कर धर्मापदेश दिया. धर्मोपदेश देने के बाद महाराजाने मुनि से कहा, " मुझे एक अपूर्व विद्या दीजिये.” तब साधु द्वारा मनोकामना पूरी होने से साधु को नमस्कार कर विक्रमादित्य खीचरित्र की परीक्षा के लिये आगे बढे. ____ अनेक नगर, ग्राम, जंगल, नदी, पर्वत आदि देखते हुए राजा पृथ्वी के आभूषण रूप लक्ष्मीपुर नामक नगर में पहुँचे. नगर की शोभा देखते हुए महाराजा आगे बढते गये, और एक जुगारी के अड्डे में आ कर ठहरे. वहां एक प्रहर ठहर कर जब महाराजा आगे बढने लगे तो एक जुगारी क्षत्रियने उन्हे भोजन के लिये आमत्रण दिया. जुगारीने अपने नौकर को घर भेज कर अपने अतिथि के लिये भोजन बनवाया. वह जुगारी जुआ खेलने में पडा. अतः भोजन की बात भूल गया, तब उस की पत्नीने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust