________________ pura चौसठवाँ-प्रकरण OF एकदा महाराजा विक्रमादित्य अपनी सभा में बैठे हुए थे. तब एक ब्राह्मण आया, और स्पष्ट रूप से इस प्रकार एक श्लोक बोला. मरुत्तटिन्याः किल वालुकानां, सरित्यते;रिपृषन्मणीनाम् ; नभस्युडूनां च शरीरिणां च, विज्ञायते नैव बुधेन संख्या.* ..' इसी समय राजसभा में स्थित एक दूसरा पांडित बोला, " आप एक अन्य श्लोक भी सुनिये. घोडों की गति + माधव का गर्जन, भाग्याक्षर-नारी की चाल; वर्षा का होना या रूकना, कौन जान सकता तत्काल ? यह श्लोक सुन कर महाराजा विक्रमादित्य बोले, “हे पांडित, यह आप का कथन पूर्ण रूप से उचित नहीं. क्यों कि, पंडितजन स्त्रीचरित्र को जान सकते है, उस का किनारा भी पा सकते है.". . उस पंडित को जेल में डाल कर महाराजा स्त्रीचरित्र जानने के लिये उत्तर दिशा की तरफ रवाना हुए. धीरे धीरे . * स्वर्गगगा या मारवाड की नदी की रेती, समुद्र में रहे हुए जलबिन्दुओ और मोती, मणि एवं तारों जगत में रहे हुए प्राणियों की संख्या यह वडे बडे पंडित जन भी नहीं जान सकते. // स. 11/918 // + वैशाख मास में मेघ की गर्जना. P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust