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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 581: नगर आदि ईनाम दे कर उन का पद आगे बढा दिया. कहा है कि___महाराजा खुश होने पर श्वेत छत्र, सुंदर मनोहर घोडे: और सदा मदमस्त रहनेवाले हाथी भी दान में दे देता है.. . महाराजा खुश होने पर नौकरों को केवल द्रव्यादि दे सकता है. लेकिन वे सेवकगण तो मात्र सम्मान प्राप्त करने के हेतु महाराजा के लिये अपने प्राण भी अर्पण कर देते है. ..अब महाराजा विक्रमादित्य भट्टमात्रादि सेवको 'से सेवित होकर सदा न्याय से राज्य कर के पृथ्वी का पालन करने लगे. दुष्टों का दमन, न्याय मार्ग का आचरण, अपनी प्रजा का पालन, हमेशां देवता और गुरु चरणों में नमस्कार करनेवाले, छ दर्शन जाननेवालों का सम्मान, और उचित कर्तव्य का पालन, परोपकार, त्याग और लक्ष्मी का उपभोग करनेवाला ही सच्चा राजा है. पाठकगण ! इस प्रकरण में तीन बाते मुख्य आई. एक मन्दिरपुर में सेठ पुत्र के शव के बारे में महाराजा द्वारा उपकार करना, दूसरी बात स्त्रीराज्य में गमन कर मोहित न हुए उस के लिये स्त्रीयों द्वारा चौदह अमूल्य रत्न * प्राप्त किये किन्तु वे अमूल्य मणि भी याचको को दिये. धन्य हैं उन्हों की 'उदारता, और तीसरी वात यह हैं कि भ्रम के कारण शतमति को मारने की आज्ञा फरमाई; परन्तु नेकदार अंगरक्षकोने किस तरह महाराजा की सेवा की वह रोमांच हाल पढे, उस परसे अपने जीवन में भी आदरणीयः आदर्श स्वीकृत करे. . . .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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