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________________ 580 विक्रम चरित्र आज्ञा का पालन करना, अग्नि में प्रवेश करना अथवा सिंह के विकराल मुख में हाथ डालाना तीनों ही महा कष्टदायक काम है. वह निर्दय कोतवाल शतमति को फांसीपर चढाने के लिये महाराजा की आज्ञा से नगर के बाहर ले गया, तब शतमति बोला, “अभी मैंने महाराजा का कुछ भी नुकशान या अपराध नहीं किया है, और यदि महाराजा मुझे बिना विचार किये ही मरवाना चाहते हैं, तो भी मुझे एक क्षणभर के लिये महाराजा के पास तुम ले चलो.' शतमति के कहने से कोतवाल उसे महाराजा के पास ले गया. उस समय शतमतिने रात में मारे हुए सपके टुकडों को लाकर महाराजा को बताया. और रात में देवी के रुदन से ले (राजा को शतमति सांपके टुकडे बता रहा है.) कर बना हुआ सारा - चित्र न. 43 वृत्तान्त महाराजा को .. . कह सुनाया.. तब शतमति की चतुराई और स्वामीभक्ति देख कर . महाराजा खुश हुए और संतुष्ट होकर शतमति को महाराजाने कुछ देश ईनाम में दिये, फिर सहस्रमति, लक्षमति, और कोटिमति वे तीनों अंगरक्षक को बुला कर उन्हों को Mitalit: / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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