________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 579 . प्रकार वह ब्राह्मण उस जहाज पर खडा हुआ बार बार अपने हाथ में रत्न को रख कर देख रहा था, इतने में दुर्भाग्यवश वह रत्न उस के हाथ से छूट कर समुद्र में गिर पडा, तब वह ब्राह्मण . बहुत पश्चाताप करने लगा. . इस प्रकार जो लोग विना विचारे काम करते हैं वे अति दुःखी होते है, इस में जरा भी संदेह नहीं. अतः हे स्वामिन् ! आप कुछ प्रतीक्षा करे, मैं आप की आज्ञा का पालन करुंगा.” कोटिमति की बात सुन कर महाराजाने विचार किया, 'यह भी . सहस्रमति और लक्षमति जैसा ही चित्र न. 42 हैं.' चोथे प्रहर के अंत में कोटिमति छूटी ले कर घर गया. - कुछ समय बाद दिन उगने पर महाराजाने कोतवाल को बुलाया और उसे आज्ञा दी, "तुम शीघ्र ही शतमति को फांसी पर चढा दो. और साथ ही साथ इसी क्षण सहस्रमति, लक्षमति, कोटिमति को भी देशनिकोल की सजा दे दो.” . यदि माता ही जहर खिला दे, पिता ही पुत्र को बेच दे अथवा यदि राजा सर्वस्व का हरण करे तो उस का शोक दुःख क्या ? अर्थात् उस का कोई इलाज नहीं हैं. राजा की P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust