________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित 577 एक बार केशव की पत्नीने उसे कहा, 'हे पतिदेव ! अन्न बिना हम दोनों दुःखी होते है, अतः धन के लिये किसी दूसरे देश में जाइये. क्यों कि _ जिस के पास धन है वही नर कुलीन है, वहीं पंडित, ज्ञानी, गुण का जाननेवाला, वही वक्ता और लोगों का मान्य है. सभी गुण धन में है. अर्थात् संसार में जहां धन होता है, वही सभी गुण माने जाते है परदेश से डरनेवाले बहुत आलसी ऐसे कौए, कायर मनुष्य, और मृग अपने देश में हा मृत्यु पाते है. जो बाहर जाकर अनेक आश्चर्य से पूर्ण समस्त पृथ्वी का अवलोकन नहीं करते वे कुएँ के मेंढक के समान होते है.' इस प्रकार सुन कर वह ब्राह्मण लक्ष्मी प्राप्त करने के लिये श्रीनगर में गया. वहां अन्य लोगों के कार्य करता हुआ भी हमेशा पूर्व के भाग्य उदय से दुःखी हो रहा. कहा है कि-इस मनुष्य भव में आने पर पहले तो माता के पेट में रहने का-गर्भवास का दुःख भोगना पडता है, बचपन में मल से व्याप्त शरीर तथा माता के स्तनपान का दुःख है, युवावस्था में भी स्नेहीओं का विरह से दुःख उत्पन्न होता है, और वृद्धावस्था तो स्वयं ही दुःखद है. अतः हे मनुष्य ! क्या संसार में स्वल्प सुख भी कहीं है ? अर्थात् इस संसार में जरा भी सुख नहीं है. ए. - इस प्रकार निर्धन रूप में घूमते घूमते केशव ब्राह्मण P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust