SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 667
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्रम चरित्र रहुँगा, और तुम शीघ जाकर मेरे आदेश का पालन कर के आओ. कहा है, 'बहुत बडे जंगल में भी अकेला सिंह रहता है। लेकिन उसे किसी शिकारी पशु या मनुष्यों से भय नहीं लगता." यह सुन कर कोटिमतिने विचार किया कि अवश्य ही महाराजा को इस समय बुद्धिभ्रम हुआ लगता है. क्यों कि शतमति तो सुंदर रत्नों की खानवाले रोहणाचल पर्वत की तरह गुणों का खजाना है, और वह कदापि किसी का प्रतिकूल या बुरा कार्य नहीं करता है. इस तरह विचार कर वह बोला, " है राजन् ! आप थोडी देर धीरज धरे. मै आप की आज्ञा का पालन करुंगा लेकिन उसके पहले मैं आपको एक अच्छी कहानी कहता हूँ वह सुनिये.' कर महाराजा बोला, “अच्छा, पहले कहानी कहों उस के बाद कार्य कर देना." शीघ्र ही कोटिबुद्धि इस प्रकार कथा कहने लगा. केशव की कथा _“लक्ष्मीपुर नामक नगर में केशव नामक एक ब्राह्मण रहता था. उसने धन प्राप्ति के लिये बार बार महेनत की पर उसे केवल दरिद्रता ही मिली. चाहे पर्वत के शिखर पर जाओ, अथवा समुद्र का उल्लधन कर विदेश जाओ, अगर पाताल में चले जाओ, लेकिन सभी जगह विधाता-कर्म के लेख का ही * फल मिलेगा. . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy