________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित. विषाद, लोगों मैं अविश्वास आदि उत्पन्न होते है. मृषावाद के पाप से जीव निगोद तथा तिथं च योनि और नरक मैं जाता है, अतः भय से अथवा दूसरे के आग्रह से भी कभी झुठ नहीं बोलना चाहिये. इस से वह महाराज क्रुद्ध हुए.' और उसने धन श्रेष्ठी का सारा धन ले लिया, और उस में से क्रोड मूल्यवाला वह रत्न सुंदर को दे दिया. वह धन वणिक भी मृत्यु पर्यंत गरीब और दुःखी बना रहा, अधिक में इज्जत खोई.” लक्षमति विक्रमादित्य महाराजा को रात में यह सारी कथा कह रहा था, उसने अंत में कहा, “जो लोग बिना सोचे समझे कार्य करते है, वे बाद में दुःखी होते है, इस में शंका नहीं है. अतः हे महाराजा ! आप कुछ समय धीरज धरे, में अवश्य ही आप की आज्ञानुसार कार्य कर दूंगा." ___ महाराजाने अपने मन में सोचा कि यह लक्षमति भी सहस्रमति के जैसा ही है. तीसरा प्रहर पूर्ण होने पर महाराजा को नमस्कार कर वह रवाना हुआ. पहरे पर कोटिबुद्धि हाजर हुआ, उस को बुला कर महाराजाने उसे भी शतमति को मारने की आज्ञा फरमाई. कोटिमतिने महाराजा से कहा, " आपको अकेला छोड कर जाने के लिये मेरा मन जरा भी तैयार नहीं होता.” महाराजा बोला, " मैं अभी स्वस्थचित्त होकर जागता. P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust