________________ 574 विक्रम चरित्र - अपने पंजे से मार कर खा गया. जिस प्रकार बुद्धिमान पंडितने अपनी बुद्धि से अपने प्राण बचाये, उसी तरह हे म त्रिन् ! तुम भी अपनी बुद्धि से इन का न्याय करा.' तब मत्रीने धन श्रेष्ठी को पूछा, 'रत्न देते समय तुम्हारा .. साक्षी कौन है ? ' धन सेठने कहा, 'यह यहां खडा हुआ श्रीधर ब्राह्मण मेरा साक्षी है.' बुद्धि के निधान मतिसागर मत्रीने सच्ची बात निकालने के लिये श्रीधर से पूछा, 'हे श्रीधर ! तुमने जो रत्न देते समय देखा था, उस रत्न प्रमाण में कितना बडा था ?' भोले-श्रीधरने मन में विचार किया, 'जब रत्न करोड रूपये के मूल्य का है, तो अवश्य घडा जितना बडा होगा ही इस में शंका नहीं है.' ऐसा सोच कर वह बोला, 'वह रत्न घडे जितना बडा था.' तब मंत्रीने पूछा, 'वह कहां बांधा जाता है ?' ब्राह्मणने विचार कर कहा, 'वह कंठ में और कान में बांधा जाता हैं.' मंत्रीने कहा, 'हे ब्राह्मण ! तुमने सत्य नहीं कहा, क्यों कि घडे जितना बडा माणिक्य गले या कान में कभी नहीं बांधा जाता है. अतः तेरी साक्षी झुठा है.' तब महाराजाने ब्राह्मण को झुठा साक्षी जान कर उसे नौकर द्वारा चाबुक से मरवाया. इस प्रकार असत्य बोलने से वह जीवनभर दुःखी हुआ. क्यों कि-जैसे कुपथ्य करने से कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते है, इसी प्रकार असत्य बोलने से शत्रुता, P.P. Ac. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust