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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 573 : / शशकने अपने बुद्धिबल से बलवान् सिंह को मार डाला. अतः बुद्धि ही बडी है.' इस प्रकार वादविवाद करते हुए चारों पांडित जा रहे थे. 'रास्ते में परने की तैयारीवाला सिंह को देखा. उन में से एक बोला, 'इसे मांस आदि-देकर-खिला कर जीवित कर दे.' क्यों कि ज्ञानदान से ज्ञानवान् , अभयदान से निर्भय, अन्नदान से सुखी और औषधदान से हमेशा जीव निरागी रहता है.' तब बुद्धिमान् . पंडित बोला, 'इस दुष्ट सिंह को अच्छा करने से सभी को महा अनर्थ होगा, अर्थात् शीघ्र ही मरणांत कष्ट होगा. कहा है कि, वैश्या, अक्का, राजा, चोर, पानी, बिल्ली और अन्य नख-दांतवाले जानवर सिंह आदि, अग्नि और सुनार का कभी विश्वास नहीं करना चाहिये.' उस बुद्धिमान पंडित के मना करने पर भी जब उन in तीनों पंडिताने उसे मांस खिलाकर स्वस्थ iPadalan किया, तब यह दूरJAN दी बुद्धिमान पंडित वहां से शीघ्र ही दूर जगल में चला गया, इधर उस सिंहने ( बिना विचारे कार्य का परिणाम.) . स्वस्थ होने पर उन - चित्र न. 40 . तीनो पांडितो को PROXIN NGUVU P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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