________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 571 वाले धन श्रेष्ठीने उसे रख लिया है.' इस तरह फरियाद पेश की, महाराजाने बुद्धि के निधान मतिसागर मंत्री को बुला कर कहा कि इन दोनों के झगड़ों का अपनी बुद्धि से तुम निपटारा करो, जैसी लक्ष्मी बिना व्यक्ति को प्रतिष्ठा नहीं मिलती, वैसे ही बुद्धि के बिना भी व्यक्ति को प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं होती, कहा हैं कि-बुद्धि विना की विद्या श्रेष्ठ नहीं होती, विद्या से बुद्धि ही उत्तम हैं, वुद्धिहीन होने से तीन पंडित सिह जीवित करने से नष्ट हो गये. इस की कथा इस प्रकार है चार पंडितों की कथा रमापुर नगर से चार पण्डित विदेश के लिये रवाना हुए. रास्ते में जाते जाते उन से विवाद छिड गया, और उन में तीन प्रगट रूप से कहने लगे, 'बुद्धि से विद्या बढ कर है. इस में कोई संशय नहीं, क्यों कि विद्वान् , महाराजा तथा बडे बडे सेठ साहुकारों और सभी जगह से मान प्राप्त करते है, कहा है कि-विद्वता और राजापन ये दाना कभी भी समान नहीं हो सकते. राजा तो केवल अपने देश में पूजा जाता है, उसे बाहर कोई नहीं जानता, लेकिन विद्वान तो सभी जगह पूजा जाता है, अर्थात् वह जहां जाता है, वहीं लोग उस को विद्वान जान कर उस का आदरमान करते है. लेकिन-चोथा अकेला बोला, 'विद्या से भी बुद्धि बडी होती है, जैसे कि किले में रहे हुए शरवीर महाराजा भी बुद्धिमान् लोगो द्वारा बन्दी बनाये जाते है, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust