________________ साहित्य मी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 569 कर अपने पिता से मिला, और धन ओष्ठी द्वारा भेजे गये रत्न के बारे में पूछा. जब सुंदर के पिताने रत्न के प्राप्त होने की बात से इन्कार किया, तो वह करोड मूल्य का मनोहर रत्न धन ओष्ठी से जाकर मांगा. तब धनने उसे कहा, " मैंने तो वह करोड मूल्यवाला मणि रत्न प्रगट रूप से तुम्हारे पिता को दे दिया है." सुंदर के यह पूछने पर, " तुम्हारा साक्षी कौन है ?" धनने कहा, "श्रीधर नामक ब्राह्मण मेरा साक्षी है. तुम्हारा पिता किसी न किसी कारण से मेरे दिये हुए मणि का इन्कार करता होगा." कहा है कि-दांत हिलते है, बुद्धि अस्थिर हो जाती है, हाथ पैर कांपने लगते है, दोनो आंखे अन्दर धंस जाती है, बल नष्ट हो जाता है, रूप की शोभा नष्ट हो जाती है, वृद्धावस्था में यमराजा का इस तरह बडा आक्रमण होता है, तब भी केवल तृष्णारूपी नटी हृदय रूपी नगर में सदा नाचती रहती है.x . फिर धन ओष्ठीने शीघ्र ही अपने घर श्रीधर ब्राह्मण को बुलाया और दश सोनामोहर देकर गुप्त रूप से कहा, "सुंदरने मुझे रमापुर में पहले एक किमती रत्न उस के पिताजी को - 4 दन्तैच्चलितं धिया तरलितं पाण्यहिणा कम्पितम् , १..दृग्भ्यां कुङ्मलितं बलेन गलितं रूपश्रिया प्रोषितम् ; . . प्राप्ताया यमभूपतेरिह महाधाट्यां जरायामियम् , -:.., तृष्णा केवलमेमकैव सुभटी हृत्यत्तने नृत्यति // स. 11/863 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust