________________ विक्रम चरित्र पर श्री भरत चक्रवर्ती के पुत्र सूर्ययशा आदि से सगरचक्रवर्ती तक श्री ऋषभदेव के वंशज असंख्य राजा मुक्ति को प्राप्त हुए / महाराजा दशरथजी के पुत्र श्री रामचन्द्रजी और भरतजी तीन करोड़ मुनियों के साथ और एकाणु लाख मुनियों के साथ श्रीनारदजी तथा पाँच पांडव आदि अनेकानेक पुण्यात्माओं की यह तीर्थ निर्वाण भूमि है और सदाकाल शाश्वत है।" तप तपते तपते सिद्ध हुये, श्रीपुण्डरीक गणधर जब से / गिरिपुण्डरीक यह नाम हुआ, सिद्धा चलकाजामें तब से / / फिर समय चक्र परिवर्तन से, शत्रुजय नाम हुआ प्याग।। यह प्रमुख तीर्थ पृथ्वी का है, यह तीन लोक से है न्यारा // हे गजन् ! अधिक क्या कहें इस परम पावन पुनीत भूमि का वर्णन अवर्णनीय है / सर्वज्ञ श्रीजिनेश्वर देवों के सिवाय कोई कहने को समर्थ नहीं। "स्वर्ग; मृत्यु और पाताल इन तीनों लोक में परम पवित्र श्री सिद्धाचल महातीर्थ के समान अन्य कोई तीर्थ नहीं है / युग के आदि में सबसे प्रथम प्रचलित सब लोक नीतियों के प्रकाशकबतलाने वाले श्री ऋषभदेव प्रभु ने इस सिद्धाचल तीर्थ पर पधार कर, इस महातीर्थ की महिमा स्वमुख से फरमाई है और इस सिद्धाचल पर पुण्डरीक गणधर आदि अनेकानेक मुनि महात्माओं ने आत्मलक्ष्मी रूप-शाश्वत-मोक्षधामको प्राप्त किया है तब से ही श्री सिद्धाचलजी का नाम श्री पुण्डरीकगिरी कहलाया और समय परिवर्तन से श्री पुण्डरीकगिरि का ही नाम जग में श्री शत्रुजय प्रसिद्ध हुआ।" .. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust