________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरजनविजय संयोजित __"अड़सठ तीर्थों में यात्रा करने से जितना पुण्य होता है उतना श्री आदिनाथ प्रभु के स्मरण मात्र से ही होता है। इसके सिवाय और भी कहा है-शुभ भावना से जो प्राणी तीथोंधिराज श्री शत्रुजय का स्पर्श करता है, श्री रेवताचल-गिरनार तीर्थ को नमस्कार करता है और 'गजपद' कुण्ड में स्नान करता है तो उस प्राणी को फिर से इस संसार में जन्म नहीं लेना पड़ता / इस तीर्थ का ध्यान करने से सहस पल्योपम र प्रमाण पाप नष्ट होते हैं, तीर्थ यात्रा के लिये नियम करने से / लाख पल्योपम प्रमाण पापों का नाश हो जाता है और तीर्थ यात्रा के लिये प्रयाण करने से सागरोपम 2 प्रमाण पाप समूह ' नष्ट हो जाते हैं / भव्य जीव को सदा मोक्ष और सुखादि को देने वाला श्री शत्रुजयमहातीर्थ प्रख्यात है; जिस पर ही पूर्व समय में श्रीपुण्डरीक आदि अनेक गणधर प्रभु सिद्ध हो गये हैं !" जैन शास्त्रों में कहा है कि इस श्रीसिद्धाचलजी पर चैत्र-पूर्णिमा के दिन पांचकोटि मुनियों के साथ श्री पुण्डरीक गणधर भगवंत ने अनशन कर मुक्ति प्राप्त की, उससे ही इस तीर्थ का 'पुण्डरीकगिरि' नाम जग में प्रसिद्ध हुआ / इसी श्री पुण्डरीकगिरि 卐 "अष्टषष्टिषु तीर्थेषु यात्रया यत्फलं भवेत् आदिनाथस्य देवस्य स्मरणेनापि तद् भवेत्" / / 12 / / सर्ग०८ 1) असंख्य वर्षों का एक "पल्योपम" होता है / (2) दश कोड़ा कोड़ी पल्योपम का एक "सागरोपम" होता है / (3) खाने पीने का सर्वथा त्याग करना। .P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust