________________ विक्रम चरित्र श्री महातीर्थाधिराज श्री शत्रुजयगिरी के अनायासस्पर्श मात्र से कोटि गुण पुण्य होता है और यदि मन वचन और काया से शुद्धि पूर्वक स्पर्श हो जाय तो अनंत गुण पुण्य होता है। तीर्थयात्रा की इच्छा से श्री शत्रुजयतीर्थ के सन्मुख एक एक कदम जाने से मनुष्य कोटि कोटि जन्मों के पातकों से मुक्त हो जाता है। पापों से अत्यन्त घिरा हुआ मनुष्य तब तक ही भयंकर दुःख का अनुभव करता है, जब तक श्री शत्रुजय गिरि पर चढ़ कर श्री जिनेश्वर देव को नमस्कार न करलें।' ___ श्री शत्रुजयगिरि के दर्शन व स्पर्श मात्र से मनुष्यों को सहज में ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है / और जो प्राणी , श्री शत्रुजयगिरिवर के आस पास के पचास योजन के भीतर में जन्म लेता है वह प्रायः अल्प समय में ही परमगति-मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। इस शत्रुजयगिरि पर मयूर, सर्प, सिंह आदि हिंसक प्राणी भी जिन दर्शन करके सिद्ध हो गये, सिद्ध होते हैं और सिद्ध होंगे।" ___उन्हीं प्राणियों का जन्म, धन तथा जीवन सार्थक है कि जो सिद्धाचल पर विराजित श्री जिनेश्वर देवों के दर्शन के लिये जाते हैं अन्यथा दूसरों का तो जन्म, धन और जीवन सब निरर्थक है / श्री जिनेश्वर देवों ने भी श्री सिद्धाचल तीर्थ को सब तीथ में सर्वोत्तम तीर्थ कहा है, सब पर्वतों में सर्व श्रेष्ठ पर्वत है, सब पुर क्षेत्रों में उत्तमक्षेत्र है।" पुराण में भी कहा है कि अड़सठ तीर्थों की यात्रा से, जो फल होता भर जीवन में वह आदिनाथ के स्मरणों से, पाता है प्राणी इसी तन में / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust