________________ साहित्य प्रमी श्री निरन्जनविजय संयोजित ~~ ~~~~~ ~uvvv vvv.. - - होते हैं / शास्त्रों में कहा भी है-- "देवलोक में देवता सदा ऐश-आराम और विषय विलास में अति आसक्त रहते हैं, नरक में जीव विविध प्रकार के दुःखों से सदा दुखी रहते हैं, पशु पक्षी आदि तिर्यश्च विवेक रहित होने से पूर्ण धर्म साधन नहीं कर सकते / अर्थात् इन तीनों गति से जीव को धर्म साधन का समुचित अवसर प्राप्त नहीं होता है। तब एक मनुष्य गति में ही धर्म-साधन की साधन सामग्री जीव को प्राप्त हो सकती है। 15 महा दुर्लभ मानवभव प्राप्त कर अविच्छिन्न प्रभावशाली त्रिकालाबाधित श्री वितरागसासन एवं शुद्ध सनातन जैन-धर्म प्राप्त कर धर्माराधन में मानव को विशेष उद्यम करते रहना चाहिये। महातीर्थ श्री शत्रुजय माहात्म्य अति दुर्लभ मानव जीवन पा, जो प्राणी शत्रुजय जाता / जिनवर प्रभु आदि नाथ दर्शन, पद वन्दन पूजन मन लाता // शुभ अनंत पुण्य होता है उसको, जन्मों का पाप हटाता है। निज दुःख दूर करके औरों के, सुख में हाथ बटाता है / महादुर्लभ मनुष्य जीवन प्राप्त कर जो प्राणी तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय महा तीर्थ में रहे हुए श्री आदिनाथ प्रभु की |क्ति पूर्वक वन्दना करता है, उसको अनन्त पुण्य होता है / गिरिराज 5 "देवाविसय पसता, नेरइया निच्च दुःख संसत्ता / तिरिया विवेग विगला, मणुआणं धम्म सामग्गी //