________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 563. इस प्रकार के सुंदर नृत्यादि कपट रहित धीर पुरुष ही हर्ष पूर्वक करवा सकते है.' ___सहमति को आते देख कर शतमतिने उसे पूछा, "हे मित्र ! इस समय तुम महाराजा को अकेले छोडकर क्यो आये हो ? राजा के कई शत्रु है, आज सचमुच ही राजा पर एक बड़ा संकट आया था, लेकिन लोगोंके और हमारे भाग्य से ही वह संकट टल सका, अतः तुम अभी जल्दि वापस जाओ, तुम्हारे पहरे का समय बीत रहा है. धीर वीर पुरुष हमेशां ही अंगीकृत कार्य को अच्छी तरह पूर्ण करते है. मेरु हिमालय हिल सकता है, उदधि करे मर्यादा भंग; किन्तु सुजनने बात कहीजो, उस का होता कभी न भंग. ___ सभी पर्वत विचलित हो, समुद्र अपनी मर्यादा का उल्लं धन भले ही कर ले, लेकिन सज्जन पुरुषों की प्रतिज्ञा हमेशा अचल रहती है, जैसे सूर्य और दिनने एक दूसरे को अंगीकार किया है, तो वे एक दूसरे को नहीं छोडते. सूर्य के बिना दिन नहीं और दिन के बिना सूर्य नहीं. सज्जन पुरुष आलस में भी जो शब्द बोल देते हैं, वे पथ्थर पर के खदे अक्षरों की तरह कभी अन्यथा नहीं होते.” / शतमति के मुख के आकार, क्रिया तथा वातचीत से उसे निर्दोष जानकर सहस्रमति प्रगट रूप में इस प्रकार बोला, P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust