________________ विक्रम चरित्र 'उद्यमी को दरिद्रता नहीं सताती, जाप करते रहने से पाप नहीं होता, मेघ की वृष्टि होने पर दुष्काल नहीं पडता, इसी तरह जागनेवाले को कोई भय नहीं रहता." महाराजा की आज्ञा से सहस्रमति चिन्ताकुल होता हुआ शतमति के घर गया, उस समय शतमति नाटक करवा रहा था. शतमति को हर्षित और दान देने में तत्पर देख कर उसे लगा कि इस का कोई अपराध नहीं लगता, क्यों कि'दूसरों की विपत्ति में सज्जन पुरुष अधिक सौजन्य धारण करते है. जैसे उनाले में-वसंत ऋतु में वृक्षो की छाया अति कोमल पत्तों से युक्त होती है. बुरा काम करनेवाले, अन्य स्त्रो में आसक्त पुरुष और चोर का मुख प्रसन्न नहीं रहता, क्यों कि उस का मन सदा भय से व्याप्त रहता है. महान पुरुषों के दूर रहते हुए भी सज्जन पुरुष खुश होते है, जैसे आकाश में चन्द्र के उदय होने से पृथ्वी पर रहा हुआ समुद्र उल्लास पाता है. हर एक पर्वत में माणिक्य नहीं होते, न प्रत्येक हाथी के सिर में गजमुक्ता (मोती) ही होते है, इसी तरह सभी जगह साधु नहीं होते. हरएक जंगल में चंदन नहीं होता है, वह तो केवल मलयाचल पर होता है, वैसा ही सच्चे साधु बहुत कम स्थानों में होते हैं. 4 x शैले शले न माणिक्यं मौक्तिक न गजे गजे / साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने वने / / स. 11/800 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust