________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित - धीरे से उन जहर के बिन्दुओं को अपने हाथ से पोंछ रहा था, उसी समय एकाएक जागे हुए महाराजाने रानी की छाती पर शतमति के हाथ को देखा, और मन में शतमति के इस कार्य को अनुचित जान कर उस पर महाराजा क्रोधित हुए, और वे विचारने लगे, 'अब मैं इसे जल्दि ही मार डालू.' फिर सोचा, 'मैं खुद उसे कैसे मारूं ? इसे अन्य सेवक के. हाथों से मरवा दूंगा.' . इस प्रकार के विचार से शतबुद्धि को मरवाने की इच्छा होने पर भी विक्रमराजाने अपने मुँह के भाव को उस से छिपाते हुए, उस का समय पूर्ण होने पर उसे घर जाने को छुट्टी दे दी, वह शतबुद्धि राजा का विघ्न हट जाने के कारण घर गया. और गानेवालों को बुलाया व महाराजा की शांति के लिये दान देने लगा. और नाटकादि से महोत्सव मनाने लगा. . दूसरे प्रहर में महाराजाने अपनी रानी को रवाना कर द्वारपर से सहस्रबुद्धि अंगरक्षक को बुलाया, और कहा, “तुम जाओ, और शतमति को मार डालो." यह सुन कर सहस्रमति बोला, “हे स्वामिन् ! आप को अभी नींद आयगी. पहले के कई अपराधी आप के शत्रु है, अतः मेरा यहां से दूर हटना उचित नहीं." इस पर महाराजाने कहा, "मैं स्वस्थतापूर्वक जाग रहा हूँ, और तुम जल्दि ही जाकर यह काम कर के. मेरी आज्ञा का पालन करेरा, क्यों कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust