________________ 560 विक्रम चरित्र कर इस प्रहर के अंत में महाराजा को डस लेगा. अब मैं विन का नाश करने में समर्थ नहीं रही, अतः हे धीर ! मैं “वीर वीर " कर के उच्च स्वर से रो रही हूँ.” तब शत-. मति बोला, “हे देवि ! तुम शांत हो जाओ, मैं आप की इच्छानुसार सारा कार्य अच्छी तरह कर लूगा." ऐसा कह कर शतमति शीघ्र ही राजमहेल में लौट आया. महाराजा को रानीवास में जा कर सोया हुआ देख कर उस ने मन में / विचार किया, 'राजा को जगाने या उन के पास जाने का यह उचित अवसर नहीं है, अभी प्रहर पूरा होते ही देवी के कथनानुसार भयंकर सर्प अवश्य आयगा, इस में शंका नहीं.' कुछ ही देर में तो जहां महाराजा सोये थे, वहां छत पर से एक काला भयंकर सर्प उतरने लगा, उसे देख कर शतमति तुरंत तैयार हुआ, और अपनी तलवार से उस के दो तीन टुकडे कर डाले, और उसे एक बर्तन में डाल दिया, लेकिन उस के जहर के कुछ बिंदु सोई हुई रानी की छाती पर गिर गये. विघ्न रूप जान कर उस को पोंछने क्षण में ( सर्प के टुकडे कर डाले. चित्र नं. 39) के हेतु से शतमा CATEना SHAREDNES मे ASTRA 62402 P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust