________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित पूछो कि, वह क्यों रो रही है ? " तब शतमति बोला, "हे राजन् ! आप को अभी नींद आ जायगी, राजन् ! आपके कई शत्रु हैं, अतः आप को छोड कर यहां से जाने की मेरी इच्छा नहीं होती है. कहा है, 'जिस महापुरुष पर सब कुछसारा कुल अवलंबित हो, उसकी यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिये. जैसे कि गाडेके चक्र में जिसमें आरे लगे होते हैं वह तूंबी के नाश होने पर उस आरे को कोई सहारा नहीं रहता. वह तूंवी नष्ट होने पर सारा चक्र, चक्र के आरे आदि कैसे टीक सकता है.” तब राजा बोले, “मैं तब तक स्वस्थ होकर जागता रहता हूँ, तुम मेरी आज्ञा का पालन करो. पुनः जल्दि आओ क्यों कि, उद्यम करने पर दरिद्रता नहीं रहती, पढने से मूर्खता का नाश होता है, और मौन रहने से झगडा नहीं होता. उसी तरह जागनेवाले को कोई भय नहीं रहता." शतमति के जाने के बाद राजा पान खा कर अपनी पत्नी के पास पहूँचे, और थोड़ी ही देर में वहां रानी के पास में ही शय्या में शान्त चित्त से सो गये. शतमति भी राजा की आज्ञा पा कर वहां से रवाना हुआ, और नगर के बाहर रोनेवाली स्त्री के पास जा कर उसे राने का कारण पूछा, तब वह स्त्री बोली, " मैं अवन्ती नगरी के राजा की राज्यलक्ष्मी की अधिष्ठायिका देवी हूँ. मैं हमेशा राजा पर आनेवाले विघ्नों को दूर करती हूँ. जहाँ राजा सो रहे है, उस मकान के छत में से एक काला भयंकर सर्प उतर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust