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________________ : साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित विक्रमादित्य ने कहा, "मैं प्राण जाने पर भी अपनी परिणित स्त्री के बिना अन्य स्त्री की इच्छा नहीं करता. कहा है, 'सज्जन पुरुष अकार्य के लिये आलसी, प्राणीवध में पंगु, पर निंदा सुनने में बहरे, और पर घी को देखने के लिये जन्मांध होते है."x विक्रमादित्य को सुशील और सदाचारी जान कर उन स्त्रियांने महात्म्ययुक्त बहु मुल्यवान चौदह रत्न दिये. चौदह रत्नोंका प्रभाव __उन रत्नों के अलग अलग गुण थे. प्रथम रत्न से अग्नि उत्पन्न होकर स्तभ बनता था. दूसरे के प्रभाव से लक्ष्मी प्राप्त होती थी, तीसरे रत्न से पानी, तो चोथे रत्न से वाहन प्राप्त होता था, पांचवे रत्न के प्रभाव से शरीर पर किसी प्रकार का अस्त्र शस्त्र नहीं लगता था. छठे रत्न के प्रभाव से स्त्री, मनुष्य और राजा वशी में होते थे, सातवा रत्न मांगने पर सुंदर रसवती भोजन सामग्री देता था, आठवें रत्न के प्रभाव से कुटुंब, धनधान्यादि में वृद्धि होती थी. नव में रत्न से समुद्र पार उतर सकते थे, दश में रत्न से विद्या प्राप्त होती . ठमकारथी, मुरखजन भरमाय, 2 स्त्री तो पाकी बोरडी, होस सहुने थाय; सोने लागे वाल ही, मूलवी नावे कांय. 3 नारी वदन सोहामणु, मीठी वोली नार, जे नर नारी वश पडया, लुटाया तस घरवार. 4" - + अलसो होइ अकज्जे पाणि बहे पंगु सया होई / ____ परतत्तीसु अ बहिरो जच्च घो परकलतेषु // स. 11/756 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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