________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित और मेरा नाम मनोरमा है, मेरा शील भंग करने के लिये एक दुष्ट राक्षस मुझे हर कर यहां ले आया है. इस _ जगत में जगत का हित करनेवाला ऐसा कोई भी पुन्यशाली व्यक्ति मुझे नहीं दिखता जो मुझे अधम के पंजे में से छुडाये.” राजाने पूछा, " वह कहां है ?" तब उसने वन में दूर स्थित उस राक्षस को अपनी अंगुली के इसारे से बताया. विक्रम राजा भी उस स्त्री की रक्षा करने की इच्छा से उस राक्षस की पास गये, और युद्ध कर के उस राक्षस को मार डाला, हर और उस नारी की रक्षा की... चित्र न. 19 . रात्रि के चौथे प्रहर. में महा राजाने उस शव से कहा, " हे शव ! उठ और, मेरे साथ जुआ खेल.” तब शवने कहा, " यदि तुम हार गये तो कमलनाल की तरह पकड कर तेरे मस्तक को काट दूंगा.” तब महाराजाने उस से कहा, "यदि तुम हार गये तो तुम्हे चिता में घास की तरह जलना पडेगा." इस प्रकार परस्पर शर्त पर वे दोनो जुआ खेलने लगे, और उस में वह शव हार गया, तव चिता जला कर महाराजाने उसे जलाया, और वह जल्दि जल गया. उस नगर में जाकर विक्रम राजाने राजा से उस शव के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust