________________ सठवाँ-प्रकरण संकट साधु शिर पडे, लेश न भूले भान; जिम जिम कंचन तापीए, तिम तिम वाधे वान. . एकदा महाराजा विक्रमादित्य मन्दिरपुर नगर में जा पहूँचे. वहां श्रीद नामक सेठका पुत्र मर चुका था. उसे स्मशान में ले जाकर चिता पर * रखा. ज्यों ही चिता में अग्नि लगाई गई कि, वह मृत शरीर दिव्य प्रभाव से उस श्रेष्ठी के घर पहुंच गया. दूसरे दिन भी इसी तरह चिता में डालने के बाद अग्नि लगाने पर पुनः सेठ के घर पहूँच गया. इस तरह उस को मरे आठ दिन हो गये. इस प्रकार होने से डरा हुआ सेठ उस नगर के महाराजा के पास गया, और अपने नगर की कल्याण कामना से सारी बातें कह सुनाई. .. राजाने शव संबन्धि यह बात ज्योतिषी से पूछा, और राजा तथा सेठ दोनों के मन में नगर के , भावि अनिष्ट की आशङ्गा होने लगी. तब राजाने शहर में ढिंढोरा पिटवाया, 'इस शव को जो जलायेगा उसे मैं कोटि द्रव्य दूंगा, और उस का बडा सन्मान किया जायगा.' जब महाराजा विक्रमने जो वहां साधारण वेश में गये हुए थे. उन्होंने ढिंढोरा सुना तो उस पटह का स्पर्श किया और राजा के पास पहूँचे. राजा से पूछ कर विक्रमने शव को खुद ले लिया, और रात के प्रथम प्रहर में स्मशान भूमि में पहुंचे. मध्यरात्रि में वहाँ रोती हुई एक स्त्री को देखा. राजा विक्रमने उस से रोने का Gumratnasun Sun Gun Aaradhak Trust