________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 551 और शीघ्र ही जाकर उसने कन्था व खट्टिका आदि लाकर उस योगी के सामने रख दी. और वह बोली, " अब आप मेरी पुत्री को जल्दि ही अच्छी कर दीजिये.” योगीने शीतकुंड के पानी से मंत्रोच्चारपूर्वक उसे स्नान कराया, तब वह शीघ्र ही पुनः कामलता के रूप में-स्त्री बन गई. फिर योगीने कहा, "अब कभी किसी परदेशी को मत ठगना." खान पान घृत पक्व बिना हो, प्रियजन से रहना अति दूर; दुष्टजनों की संगति हो तब, जानो पाप हुआ भरपूर. घी विना का भोजन, प्रियजन का वियोग और अप्रियजनों का सयोग ये सब पाप के कारण है. राजा विक्रमादित्य वेश्या को किसी को ठगने का निषेध कर के भट्टमात्र के साथ अपनी नगरी अवन्ती के प्रति रवाना हुए. रास्ते में लोगों को तरह तरह के उपकार करते हुए, जाते जाते वे चारों वस्तु भी दान में दे दी, और स्वर्गपुरी समान अपने नगर में पहूँचे. पाठकगण ! इस प्रकरण में आपने राजाकी चतुराई, साहस तथा बुद्धि, प्रतिभा की कथा पढी, आगे प्रकरण में शव की अद्भुत कथा राजा का साहस तथा उसके परिणामो को पढे. ...... P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust