________________ ' विक्रम चरित्र अतः इस दुःख से मैं आत्महत्या कर के मरनेवाली हूँ. अगर इसे कोई ठीक करेगा तो मैं उसे मुह मांगा धन दूंगी." भट्टमात्र ने कहा, "मैंने उद्यान में एक योगी को देखा है वह सभी प्रकार की विद्याएं जानते है.” तब वेश्या बोली, " यदि तुम उस चोगी को मुझे दिखाओ तो मैं तुम्हे अपनी आजीविका के लिये बहुत धन दूंगी." ... तव भट्टमात्र वेश्या को जंगल में ले गया, और आसन पर बैठे हुए योगी को बताया, वेश्याने उन्हें प्रणाम किया. फिर ध्यान में मस्त योगी को वेश्याने विनयपूर्वक कहा, “हे परोपकारी! दया के सागर जगद्वन्द्य योगीराज ! मुझ पर खुश हो कर जल्दि ही मेरी पुत्री को ठीक कर दीजिये. आप जो मांगोगे वह मैं दूंगी. और इस कार्य का आप को बहुत पुन्य होगा.” क्षणभर ध्यान करने का नाटक कर के तथा क्षणभर मस्तक हिला कर योगीने कहा, “तुमने एक परदेशी पुरुष को ठगा है, और उस पाप से तुम्हारी पुत्री बन्दरी बन गई है, 'किया हुआ पाप इस भव या परभव में भुगना ही पडता है. इस परदेशी से तुमने जो खट्टिका और कन्था ली है. वह लाकर मेरे चरण में रख दो, तब मैं मंत्र के प्रभाव से तुम्हारी पुत्री को ठीक कर दूंगा यदि तुम मेरा कहना नहीं करोगी ता. तुम्हारी पुत्री की मृत्यु हो जायगी.” .. . योगी का वचन सुन कर अक्का मन में भयभीत हुई, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust