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________________ विक्रम चरित्र नहाकर श्री जिनेश्वरदेव के मंदिर में सुंदर फूलों द्वारा भावभक्ति सहित प्रभु की पूजा की, और सुंदर राग से स्तुति आदि / कर के वहां से आगे बडे. राजाने आगे जाते हुए वनमें पांच चोरों को देखा. वे आपस में लड रहे थे. राजाने उन्हें पूछा, " तुम लोग आपस में क्यों लड रहे हो ? लडने से तो केवल पत्थर हाथ आते है, मोदक नहीं, अर्थात् लडने से केवल हानी होती है, लाभ बिलकुल नहीं, कहा है-'वैर, अग्नि, व्याधि, वाद और व्यसन ये पांचो वकार बढने पर महा अनर्थ करते है.x चोरोंने यइ सुन कर राजा से कहा, "हमने इस जंगल में एक योगी के पास चार आश्चर्यजनक वस्तुएं देखी, उन्हे देख कर हमारा मन लेने के लिये ललचा गया. उन चारों वस्तुओं के नाम और गुण यों है (1) खडी से चित्रित एक घोडा है, जो क्षण में सजीव हो जाता है, और लकडी से मारने पर वह आकाश में हवा की तरह उडता है. उसे बेचने से एक लाख सोने की मुहर मिल सकती है. (2) एक खाट है, जिसे स्पर्श करने पर वह दिव्य प्रभाव के कारण आकाश में उडने लगती है. (3) एक कन्था याने गुदडी है, जिसे पीटने पर उस में से 500 सोना 4 वैर वैश्वानरो व्याधिर्वाद व्यसन लक्षणाः। महानाय जानन्ते वकाराः पंच वर्धिताः // स.. 11/678 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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