________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित ___ 547 मुहरे निकलती है, और (4) चौथी एक थाली है जो आगे रखने पर मनुष्यों को इच्छित भोजन देती है. इन चार वस्तुओं को देख कर हमारा मन लोभायमान हो गया. लोभ मनुष्य या नारी के पास क्या क्या अशुभ -पाप नहीं कराता है ? शरीर शिथिल होता है किन्तु आशा शिथिल नहीं होती है. शरीर का रूप नष्ट होता है, किन्तु पाप-बुद्धि नष्ट नहीं होती है. वृद्धावस्था आती है किन्तु ज्ञान नहीं आता है, धिक्कार है ऐसे प्राणीओं की लीला को. हमने ये चारों चीजे योगी के यहां से ले ली है, और अब हम पांच है, अतः हम में इन चीजों को बांटने के लिये झगडा हो रहा है.” राजाने उन लोगों की बात सुन कर कहा, "ये चारों चीजे मुझे दे दो, और मैं विचार कर के तुम लोगों में बांट दूंगा.” फिर उन चारों वस्तुओं को प्राप्त करके राजा बोले, “तुम लोगोंने उस योगी को मारा है. अतः उस का पाप तुम्हे फलेगा." इतना कह कर राजा खाट पर बैठ. गये और आकाशमार्ग से ऋद्धि-शोभा में स्वर्ग पुरी के समान : मनोहर लोहपुर नगर में शीघ्र पहूँच गये. लोहपुर में विक्रम राजाने एक व्यापारी को अपना मित्र बनाया, और उसे थाली और खाट देकर नगर देखने गये. . उस नगर में कामलता नामक वेश्या थी, जो व्यक्ति, उसे एक लाख रुपये आदरपूर्वक देता, वह उसके पास एक रात रह सकता था. राजाने उस खडी चित्रित घोडे को सजीव. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust