SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 635
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 544 विक्रम चरित्र मादित्यने राजभण्डारी से उस पंडित को एक करोड सोनामहोरे. दिलवाई और रवाना किया. नारी बदन सोहामगुं, मीठी बोली नार; जे नर नारी वश पडया, लूटया तस घरवार. ... एकदा विक्रम राजा अपनी सभा में बैठे, हुए थे, इतने में वहां एक बुद्धिमान और चतुर व्यक्ति आया, उसने कहा,, "लोहपुर नगर में रहने वाले सभी व्यक्ति धूत हैं. पांडित या मूर्ख सभी लोगों को ठगते हैं." उस के बाद राजा ने उसे उचित दान देकर विदा किया और स्वयं उस नगर को देखने के लिये उत्सुक हुए. . एक दिन राजाने अपने प्रिय मित्र और मंत्री भट्टमात्र को पूर्व दिशा में उस नगर के प्रति जाने के लिये पहले रवाना किया. फिर स्वयं भी नमस्कार महामंत्र स्मरण कर रवाना हुए. कहा है, सिंह कभी शुकुन नहीं देखता, न चंद्रबल ही देखता है, वह अकेला ही लाखों से भिड जाता है, अतः जहां साहस होता है वहीं कार्य सिद्धि होती है. क्रमशः चलते चलते राजा एक जगल में पहुंचे. वहां उन्होंने ठन्डे और गरम जल के दो कुंड देखें. कुंड देख कर वे वहाँ ठहरे ही थे कि, इतने में वहां एक बंदरों का झुड आया, उन्होंने ठंडे पानी के कुंड में स्नान किया, जिस से वे क्षणभर में निर्मल शरीरवाले मनुष्य बन गये, पश्चात् आसपास के वृक्षों के कोटरों में से वस्त्रों को लेकर पहना और पास के श्री जिनेश्वरदेव के मंदिर में जा कर उत्तम सुगधात P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy