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________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित कते हुए थोडे दूर पर एक ग्वाले को वहां देखा. और उसके पास जा कर उस से पूछा, 'तुम यहां कैसे और कहां से आये हो ? ' तब उस ग्बालेने उत्तर दिया, 'जंगल में भटकता भटकता मैं यहां आया था, तो एक अबला को वटवृक्ष के नीचे देख कर, और भोग के लिये प्रार्थना करने पर उसे बहुत दिन तक कई बार भोगा है, अब मैंने उस की भस्म कर के वटवृक्ष के कोटर में रख दिया है.' छाहडने अपनी पत्नी का विषम चरित्र जान कर उस के पास आया, और इस प्रकार से मर्म वचन कहा मई गई पलाइणी छापरी छारएण; छाहड भणइ ते ढाढ नर जे रत्ता तीअगुणेग. // सर्ग 11/657 / / __पति का ऐसा वचन सुन कर रमा बोली, 'आप ऐसा क्यों कहते है ! मैं तो हमेशा आप के गुणों में आसक्त बनी : हुई रहती हूँ.' तब छाहड बोला, 'मैं जानता हूँ कि तू बहुत से पुरुषों में आसक्त हैं, अब तू मेरे आगे जूठ क्यों बोलती है ? ' फिर रमा का त्याग कर वैराग्यवासित हो छाहडने कोई तापस के पास तापसी दीक्षा ग्रहण की. और उस दीक्षा का पालन करने से आयु क्षय होने पर स्वर्ग में गया, और उधर रमा अनेको बार अपने शील खंडन से तथा कुमार्ग सेवन से अति दुःखदायक नरक में गई.” .. . र यह छाहड और रमा की कथा पंडित से सुन कर विक्र P.P.AC.'Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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