________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 541 'मैं गया तीर्थ की यात्रा करने के लिये जाता हूँ. वहां से छ महिने बाद आउंगा. तब तक तू समाधि में रहे.' कह कर अपनी पत्नी को जला कर उस की राख को एक पोटली में बांध लिया, और अमृतकुंपिका को साथ लेकर वह कोई विषम वन में चला गया. जंगल में एक बडे वटवृक्ष की शाखा के कोटर में अपनी स्त्रीकी भस्म को रखकर वह (छाहड) दीपावली के त्यौहार पर यात्रा करने निकला. . . इधर उस वटवृक्ष की छाया में बकरियां चराने के लिये एक ग्वाल सदा आता था. एक दिन उस शाखा के सूखे पत्तों देख कर वह वहां आया. उसने वह राख की पोटली देखी तो उसे नीचे उतारा. उसे खोलते समय उस के अंदर की अमतकुंपिका में से एक बिन्दु उस में गिर गया. इतने में वहां वस्त्राभूषण सहित एक सुंदर स्त्री खडी हो गई. इस से वह आश्चर्यचकित हो गया, और भयाकुल होकर वह वहां से भागने लगा. तब वह रमा बाली, 'तुम यहां का आओ, और मुझे भीगदान देकर अपनी - प्रिया बनाओ.' यह * ALL सुनकर वह ग्वाल वापस वहां आया, और SC उस से पूछा, 'तुम (स्त्री को देख ग्वाला ताजुब हो गया.) कौन . हे? किस चित्र नं. 33 प P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust