________________ 540 विक्रम चरित्र हुए थे.' इस पर छाहड बोला, 'मैं तुम से यह पूछता हूँ, ये आंखे किस से मिलाई और क्या उस स्त्रीने संतान को जन्म दिया है ?' तब वह रमा अपनी चतुराई का गर्व करती हुई बोली.' - छाहड छल्ला ते भला जेह नामिई छइल; रन्नि सिउ आवई दिकरा खेडित वल्ल. 631 स्त्री के इस प्रकार के जवाब से छाहड अपनी पत्नी के दुष्ठ चरित्र को मन में समझ गया. और उस पर अविश्वास रखता हुआ अपने नगर में आया. उसने किसी सिद्धपुरुष से एक अमृतकुंपिका प्राप्त की, और जब कभी वह बाहर जाता तो छाहड़ अपनी पत्नी को जला कर उस की राख को एक पोटली MPA R AN में बांध कर रख जाता. जब वह घर आता तो उस अमृत+ से उसे जिन्दा कर अपना घर का काम करवाता. (छाहा भस्म की पोटली कोटर में रख रहा है.) चित्र न. 32 अपनी पत्नी से कहा, S एक बार उसने +जैन मतानुसार यह बात योग्य नहि लगती. किन्तु मूल सस्कृत चरित्रकारने यह दन्तकथा के रूप से सुनी वैसी ही चरित्र में संग्रहीत का है। उसके अनुसार हमने मी अनुवाद में वैसी ही रखी है. जैन मतानुसार असंगत है, वांचकगण यह शोचे. ~ संयोजक. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust