________________ विक्रम चरित्र 538 साथ रमा हमेशा विलास किया करती थी, वह मिल गया, उसने रमा से कहा, " तू तो अब अपने पति के साथ ससुराल जा रही है, अतः हम दोनो का एक समय वार्तालाप हो तो अच्छा.” तब रमा बाली, "हे प्रिय ! यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है, तो मैं तुम्हारा मनोरथ जल्द ही पूरा करुंगी. यदि तुम्हे मुझ से मिलने की इच्छा हो तो एक सुंदर रथ में बैठकर जल्दि ही हमारे जाने के रास्त में एक दो कोस दूर जा कर ठहरो. वहां एक ऊँचा तंबू खडा कर के और तवू के एक तरफ रथ स्थापित कर के तुम अपने मित्र को युक्तिपूर्वक वहां खडे रखो. तुम स्वयं तंबू के अंदर रहना. तुम अपने मित्र को सिखा रखना कि, जब छाहड आकर यह पूछे, 'तुम यहां क्यों ठहरे हो.' तो वह यह जवाब दे, 'मेरी पत्नी को रास्ते में अकस्मात् प्रसव का समय आ गया है. अभी उसे प्रसूति का दर्द हो रहा है, और मैं इसकी क्रिया जानता नहीं हूँ. अतः यहां ठहरा हूँ.' उसे इस प्रकार सिखा कर वह रमा अपने स्वजनों के घरों में घूम फिर कर खूब देर बाद प्रसन्न मुख अपने पिता के घर लौटी. छाहड अपनी पत्नी को अपने रथ में बिठा कर सास संसुर को प्रणाम करके अपने नगर के प्रति रवाना हुआ. रास्ते में ऊंचे तंबू को देख कर सरल बुद्धिवाला छाहडने उस को . पूछा, 'अरे भाई! यहां जंगल में रथ को छोडकर क्यों खडे हो ?' उसने जवाब दिया, 'अरे क्या कहूँ, यहां मेरी पत्नी को प्रसूतिकाल का दर्द हो रहा है. अतः इसी लिये अभी में P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust