________________ विक्रम चरित्र नगर, दोषों का भंडार, सैकडो कपटो का स्थान, अविश्वास का क्षेत्र, श्रेष्ट व्यक्तिओं द्वारा भी न समझा जा शके वैसा, सर्व माया से भरा हुआ करण्डक और अमृतमय विष समान स्त्री रूपी यंत्र लोकधर्म के नाश के लिये किसने बनाया ?'+ कहकर आनंदित मनवाले राजा कोची को नमस्कार करके अपने स्थान पर आये. संसार के स्वरूप का स्मरण करते हुए राजाने बुद्धिसागर मंत्री और मदनमजरी रानी दोनों को अपने देश से बाहर जाने का अर्थात् देशनिकाल का दण्ड दिया. पाठकगण ! रत्नमजरी के कथनानुसार महाराजा विक्रम कोची हलवाइन के वहां गये, और वहां क्या देखा, देख कर मनोमन ही खिन्न हुए, राजराणी और मत्रीश्वर आदि की अयोग्य कारवाही के हेतु देशनिकाल कर अपनी सारी प्रजा में न्याय का ऊच्चा आदर्श का उदाहरण बताया, वासना कैसी बुरी है, मंत्रीश्वर और राजराणी को भी उसी वासना के कारण देशनिकाल होना पडा. दुःखी होकर भटकना पडा, वाचक ऐसी वासना से सदा ही दूर रहना, वही सुख का परम श्रेष्ट मार्ग है. , नारी तो झेरी छुरी, मत लगावो अंग; दश शिर रावण के कटे, परनारी के संग. नागणी से नारी बुरी, दोनु मुख से खाय; जीवता खाय कालजा, मुवा नरक ले जाय. * आवतः संशयानामऽविनयभवन पत्तन साहसानाम् , दोषाणां सन्निधान कपटशतगृह क्षेत्रमप्रत्ययानाम् / अग्राह्य यन्महद्भिर्नरवरवृषभैः सर्वमायाकरण्ड, स्त्रीयंत्र केन लोके विषममृतमय धर्मनाशाय सृष्ठम् // 11/600 " P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust