________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित अभ्यास से श्रुत ज्ञान की रक्षा होती है, कुलका रक्षण वडिल पुरुषों की सतत सावधानी से होता है. पुरुष का रक्षण धर्म क्रिया से ही होता है, दान से राजाओं की और कुसुम-पुष्प से वनकी रक्षा होती है, लेकिन स्त्रीओं की रक्षा किस तरह होती है, यह मैं अर्थात् कोई नहीं जानता..... .. स्पर्श न्दिय रूप महासर्प से ग्रस्त स्त्री या पुरुष अपने पति, माता, पिता आदि को ठगनेवाला कौनसा काम नहीं करता है ? स्पशेन्द्रिय के विष से व्याप्त श्री देवकी नन्दन कृष्णने गोपिकादि स्त्रियों के साथ क्या रमण नहीं किया है ? कामदेव के बाण के विष से विहवल बने हुए महादेवजीने क्या तपस्वीनी का सेवन नहीं किया था ? क्या कामवाण से विद्ध ब्रह्माजीने भी विहवल मन होकर अपनी पुत्री ब्राह्मी के साथ विषय सेवन नहीं किया ? क्या इन्द्रने कामविह्वल हो कर अहल्या का सेवन नहीं किया ? क्या पाराशर आदि तापस भी कामग्रस्त नहीं हए ? हे राजन् ! स्त्रियों में तो काम विशेष प्रमाण में होता है, तो फिर वह एक पति से कैसे संतुष्ट होगी? क्यों कि पुरुष से स्त्री का आहार दुगुना होता है, लज्जा चौगुनी, कार्यव्यवसाय छगुना और काम आठ गुना होता है." का मन कुच शांत हुआ और वे बोले, 'यदि स्त्री कामग्रस्त ही हो तो क्या किया जाय ?" .. "संशयों का आवत, अविनय का घर, साहसों का 15 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust