________________ 525. साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित .. __ जहां भिखारियों को सदा दान देनेवाली प्रत्यक्ष कल्पलता के समान कोची हलवाइन रहती है. इसके पाससे भोग की इच्छावाले भोग प्राप्त करते है, भोजन की इच्छावालों को भोजन मिलता है, और पुत्र की इच्छावालों को पुत्र भी मिलता है. वह कोची कोपायमान होने पर चंडिका जैसी भयंकर और संतुष्ट होने पर ईष्ट को देनेवाली है." इन सब बातो. को सुनकर राजा मन में चमत्कृत होते हुए, अपना वेष बदल कर उस कोची हलवाईन के घर के द्वार पर आकर खडे हो गये. उस के घर में अनेक दरवाजे है, और अनेक प्रकार के लोग वहां है. पांच प्रकार की ध्वनि करनेवाले मनाहर बाजे बज. रहे थे, देवविमान जैसे तथा से कडो स्त्रियों से भरे हुए उन मनोहर घरों को देख कर राजा अपने मन में बहुत खुश हुए. . अदृश्य रूप कर के राजा विक्रमादित्य घर के अन्दर गये, वहां सोने के सिंहासन पर बैठी हुई कोची हलवाईन को देखा. याचकगण उस की स्तुति कर रहे थे. कामदेव की . पत्नी रति और प्रीति के समान उस का मनोहर रूप को देख कर राजा अपने मन में विचारने लगे, “क्या यह साक्षात् इन्द्राणी है ? या देवांगना है ? किन्नरी है ? या कोई पातालकुमारी है ? " ऐसा विचार कर रहे थे कि दासी : उन्हे कोई परदेशी समझ कर स्नानागार में ले गई, और स्नानपीठ पर बिठा कर कोटीपाकादि तैलों द्वारा मालिश करके कस्तूरी आदि सुगंधित मिश्रित जल से स्नान कराया. राजा विक्रमादित्यने पुनः पर P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust