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________________ 522 विक्रम चरित्र धतूरे आदि के अनेकों पेडों को तुमने देखा होगा, लेकिन कल्पवृक्ष को कभी नहीं देखा होगा. . रसभूमि, विषभूमि, तथा मरुभूमि तुमने अवश्य देखी होगी, लेकिन कहीं भी रत्न और मोती से भरी हुई भूमि नहीं देखी होगी. हे राजन् ! न मैं अधम हुँ, न जड हूँ और न .. मैं स्त्रियों में शिरोमणि हु, लेकिन मैं मर कर पृथ्वीतल पर अपने यश को छोडकर सुरलोक को जाउंगी." यह सुन कर राजा बोला, "हे रत्नमांजरी! तुम कुछ तो स्त्रीचरित्र कहा." रत्नमंजरीने कहा, “तुम अपने नगर के अंदर रहनेवाली काची हलवाइन को पूछो, वह कोची मेरा तथा अन्य स्त्रियों का भी चरित्र जानती है, अतः अवन्तीपुरी में रहनेवाली कोची हलवाइन से स्त्रीचरित्र पूछना. हे राजन् ! तुम्हारा कल्याण हो. और मिच्छा मि दुक्कड-मेरा पाप मिथ्या हा.” इस प्रकार कह कर उसने दोनों पुरुषों के साथ चिता में प्रवेश किया. सब अपने अपने स्वार्थ को रोते हुए लोगों के साथ महाराजा अपले नगर में आये. रत्नमंजरी जल कर भस्म हुई, और स्वर्ग लोकमें गई. . . . .' बाबा जगमें आय के मत कर बुरा काम; / बडे मोज न पावत बिस्था भये बदनाम. - पाठकगण / गत प्रकरण में और इस प्रकरण में रत्नम जरी का अदः / भुत रोमांचकारी जीवन का हाल एवं मोहराजाने एक स्त्रीरत्नको किस तरह विङक्ति कर स्त्रीचरित्र का उदाहरण जगत के सामने पेस किया, इसी लिन P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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