________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित "हे राजन् ! यह बात मुझ से मत पूछो, क्यों कि जैसा समय आता है, अर्थात् जिस समय जैसा कम-उदय में आता . है, वैसा मनुष्य का बर्ताव भी. हो जाता है. हे राजन् ! तुम अपने पैरों के निचे जलती हुई आग को नहीं देख पाते. कहा है कि __ दूसरे के राई और सरसों जैसे छिद्र देखते हो, लेकिन ... अपने बिलफल जितने बडे बडे छिद्र भी नहीं दिखते. + विष्णु, शंकर और कपिल आदि मुनिगण, चक्रवत्ती तथा मनुष्य आदि / सभी स्त्रीयों के दास है.. गुरु, गाय, सेना, पानी, स्त्रियों और पृथ्वी ये छ निन्दा के योग्य नहीं हैं. इन की निन्दा करनेवाले स्वयं निन्दा के पात्र बनते है. हे राजन् ! आप को स्त्रीचरित्र जानने की इच्छा है, तो उसे जानकर तुम्हे दुःख होगा! पहेले भी घांचन के आदेश से सुम्हारी बहुत निन्दा हो चुकी है, और अब तुम मेरे पास से स्त्रीचरित्र सुन कर निन्दित होगें. तुमने बिलों में जगह जगह चूहे तथा सर्प देखे होंगे, पर अभी दृष्टि विष सर्प नहीं देखा होगा, जिस के देखते ही प्राण नष्ट हो जाता है. तुमने समुद्र में छीप, शंख, कौडी देखी होगी, लेकिन कौस्तुभमणि नहीं देखा होगा. हे राजन् ! नीम कथेरी, करोर, __ + राईसरसवमित्ताणि परछि आणी पास से। .. . भप्पणो बिल्लमित्ताणि पिच्छंतो नः वि पाससे // सर्ग' 11/18 // देखते ही देखी होगा trasuri m.s. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust