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________________ 520 . विक्रम चरित्र अपने पति के गले का अंगुठे से दवाकर मार दिया था. तुम्हे चोर के साथ संभोग की जो इच्छा की थी, अब उस सुखेच्छा को छोडकर तुम्हे अग्नि में गिरने से सुख कैसे होगा ? तुम अब अग्नि प्रवेश कर के क्यों मरती हो? तुम नया पति कर के अपने यौवन को कृतार्थ करा. मृत्यु प्राप्त करने से भी जीव अपने किये हुए दुष्कर्म से कभी छूट नहीं सकता. हे रत्नमंजरी! तुम अभी तो काष्ठभक्षण के लिये तैयार हुई हो, लेकिन रात्रि में तो तु ने अपने पति को मारा है, अतः तुम स्त्रीचरित्र किये बिना मेरे. आगे सत्य बात कहा, मैं तुम्हारा चरित्र किसी से नहीं कहूँगा.' Wha . AYA 3 ...P.S. 7 .......... . asarSap AB Jes (IFICENTER 11-' ---TATION HindAMMAR - 1EMA - - - ---- - ON आर. CLAIMM -:... MER M महाराजा विक्रमादित्य और रत्नमंजरी वार्तालाप करते हैं. चित्र न. 20 ... 'विक्रमादित्य राजाने अतिथि रूप से रात्रि का मेरा सत्र घृत्तान्त जान लिया है, ऐसा जान कर * रत्नमजरी बाला, Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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