________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 519 पर पहुँची, वहां पर मणिभद्र यक्ष का मंदिर था. उसके पास जाकर रत्नमंजरी घोडी पर से नीचे उतरी, भिक्षुकों को दान में बहुत द्रव्य दिया, अंत में प्रसन्न मन से चिता के पास आ पहूँची. इतने में महाराजा विक्रमादित्य भी बहुत से नौकरों के साथ आ पहुँचे, और उन्होंने लोगों के द्वारा सती का सुंदर महोत्सव कराया. __राजा विक्रमादित्य को आया हुआ देख कर रत्नमंजरी बोली, “हे राजन् ! तुम चिरंजीवी रहा. चिरकाल यश प्राप्त करते हुए, भूमि का पालन करो, और चिरकाल धर्म में रुचि रक्खो. लेागों का जिस तरह तुमने उपकार किया है, उसी तरह चिरकाल तक उपकार करते रहो, और पुत्रपौत्रवान बनो." रानी श्रृंगारसुंदरी भी वहां उस सती के पास आई, और उसे प्रणाम करके उसने पुत्रप्राप्ति के लिये उससे चरणोदक मांगा. तब सतीने थालीमें से एक मुट्ठी गीले चावल-अक्षत रानी को देकर कहा, “तुम पति के साथ पुत्र पौत्र से युक्त होकर चिरकाल तक जय प्राप्त करो." . तत्पश्चात् राजा विक्रमादित्य यातें करने के लिये सती के पास गये, और उस के कान में कहने लगे, "तुम तीनों काल को जाननेवाली हो, और राजा की भी हितकारिणी हो, और अपने शील के प्रभाव से तुम लोगो को संतान देती हो, तुम्हारे चरणोदक से लोगों के शरीर से रोग नष्ट हो जाते है लेकिन तुमने रात्रि में चोर-अन्य पुरुष को सेवन करने की इच्छा से 14 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust