________________ 518 विक्रम चरित्र " उस सती शिरोमणि का चरणोदक तेरे पुत्र प्राप्ति के लिये मैं लेकर आउंगा." उपर से गंभीरता बताते हुए राजाने लोगो से कहा, "जल्दी ही उस सती शिरोमणी के लिये उस के सतो होने का उत्सव करे. मैं अभी कहा आता हूँ. अतः मेरे आने तक आप सब लोग नदी तट पर ठहरें, मैं भी सती के पास जाकर अपने मन की कुछ बातें पूछना चाहता हूँ. क्यों कि जो खी इस प्रकार सती होती है, और काष्टअक्षण करती है. वह जो कुछ बोलती है वह सत्य होता है." वे लेग सती का महोत्सव करने के लिये धन्यश्रेष्ठी के रत्नम जरी एक सुंदर पात्र में चीनी-सकर सहित क्षीर का भोजन करने के लिये प्रसन्न मन से तैयार होकर बठी थी. भोजन करने के बाद उसने अपना सब धन सात क्षेत्रों में खर्च कर, गुरु को साक्षी कर के इस प्रकार की अंतिम आराधना की. फिर श्रीनीजिनेश्वर देव को प्रणाम कर के लोगों से क्षमायाच करती हुई रत्नमांजरी घोडी पर सवार होकर सती होने के लिये राजमार्ग से रवाना हुई. उस के रवाना होने पर बाजे बजने लगे, बाजों के स्वर को सुनकर लोग अपना अपना काम छोडकर सती स्त्री रत्न मंजरी को देखने के लिये आने नगे. उसने जो अक्षत फक उसे लोग, “मैं लू, मैं लूं" कहते हुए संतान प्राप्ति के हेतु से ग्रहण करने लगे, अंत में वह रेखां, नदी के तट P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust