________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरअनविजय संयोजित बारबार इस प्रकार कहने लगे, "हे माता! तुम्हारे विना हमारा समय किस प्रकार बीतेगा? तुम्हारे बिना जगत शून्य हो जायगा. यह अवन्ती नगरी विधवा बनेगी. लोगों की आशा रूपी लता सूख कर नष्ट हो जायगी, और हम सबपे आप के मरने से भारी दुःख आ पडेगा, अतः आप सती बनने का विचार सर्वथा छोद दे." क्यों किन होनेवाले तथा से पुत्ररहित की इधर कुछ लोग महाराजा विक्रमादित्य के पास गये और राजाजी से कहा, "धन्य की पत्नी सती रत्नम जरी अपने पति के साथ कर स्वर्ग में जाने को तैयार हुई है. वह रत्नमांजरी प्रत्यक्ष कामधेनु, कल्पलता और कामकुंभ समान है. हमारे लिये तो रत्नमजरी कल्पवृक्ष के समान ही है, क्यों कि उस के पादप्रक्षालन (पैरधोने) से वात, पित्त, व कफ से उत्पन्न होनेवाले तथा विष जन्य और दुष्कर्म जनित कई रोग नष्ट हो जाते है, उस से पुत्ररहित स्त्री पुत्र को प्राप्त करती थी, निर्धन लोग धनवान हो जाते थे, अभागे लोग सौभाग्यवान तथा कुरूप सुरूप बन जाते थे लोगों की यह यात सुन कर शीलरत्नविभूपित महाराजा विक्रमादित्य की रानी अंगारसुंदरी राजा से कहने लगी, “हे राजन् ! मैं भी अपने शरीर को उस के चरणोदक से पवित्र करूं, जिस से मेरा वंध्यत्व -बांझपन नष्ट हो जाय, और कुल की वृद्धि हो." - रानी की यह बात सुन कर रत्नमंजरी के स्व प को जानने वाले राजा अंदर से मनमें हसने लगे, और उपर से घोले, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust